November 21, 2024

द पंजाब रिपोर्ट फिरोज़पुर, कृष्ण जैन :- सनातन धर्म रामायण अखंड पाठ मंडली एवं धर्मार्थ औषधालय में महाशिवरात्रि एवं भक्त धूमी जी महाराज की 76 वी पुण्यतिथि के उपलक्षय में श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिवस में स्वामी आत्मानंद पुरी जी महाराज की प्रेरणा और आशीर्वाद से भगवद्चरणानुरागी कुलभूषण गर्ग ने भागवत का उद्देश्य और महात्तम के बारे में बताया।

उन्होंने प्रवचन करते हुए कि जो जगत की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के हेतु हैं, और जो तीनों प्रकार के ताप के नाशकरता हैं उन सच्चिदानंद स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को हम सब वंदन करते हैं। उन्होंने कहा की आनंद तो तुम्हारा अपना ही स्वरूप है। आनंद को जीवन में किस प्रकार प्रकट करें, यही भागवत शास्त्र सिखाता है।

श्री सनातन धर्म रामायण अखंड पाठ मंडली एवं धर्मार्थ औषधालय में महाशिवरात्रि एवं भक्त धूमी जी महाराज की 76वी पुण्यतिथि के उपलक्षयमें श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिवस में स्वामी आत्मानंद पुरी जी महाराज की प्रेरणा और आशीर्वाद से भगवद्चरणानुरागी कुलभूषण गर्ग ने भागवत का उद्देश्य और महात्तम के बारे में बताया कि जो जगत की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के हेतु हैं, और जो तीनों प्रकार के ताप के नाशकरता हैं उन सच्चिदानंद स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को हम सब वंदन करते हैं।

शास्त्रों में परमात्मा के तीन स्वरूप सत,चित और आनंद हैं। सत प्रकट रूप से सर्वत्र है। चित-मौन है, और आनंद आप्रकट रहता है, वैसे आनंद जीव के अंदर ही होता है, परंतु मनुष्य उस आनंद को अपने बाहर ही खोजता है। आनंद तो तुम्हारा अपना ही स्वरूप है। इस आनंद को जीवन में किस प्रकार प्रकट करें, यही भागवत शास्त्र सिखाता है। जैसे दूध में मक्खन रहता है फिर भी दिखता नहीं है परंतु दूध से दही बनकर, दही मंथन करने पर मक्खन दिख जाता है ठीक इसी प्रकार से मानव को मनोमंथन करके आनंद को प्रकट करना है।जीव है तो ईश्वर का ही स्वरूप है, तो भी उस ईश्वर को पहचानने का यत्न करता नहीं है। इसी कारण से इस जीव को आनंद नहीं मिलता है। नास्तिक भी हार थक कर अंत में शांति ही खोजता है।


व्यास जी के आश्रम में गणपति महाराज आते हैं। आनंद के धाम श्री शंकर जी का श्री शुकदेव जी महाराज के रूप में अवतार होता है,और शुकदेव जी महाराज अपनी माता अरनी देवी धर्मपत्नी श्री व्यास जी के पेट में 16 वर्ष तक रहते हैं, और ठाकुर जी शुकदेवजी को आश्वासन देते हैं कि मेरी माया का तुम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा तो फिर शुकदेव जी का जन्म होता है।
देव ऋषि नारद जी की वृंदावन में भक्ति से भेंट हुई। भागवत शास्त्र में 12 स्कन्धऔर18000 श्लोकों की व्यास जी ने रचना की है।


आत्मदेव ब्राह्मण और धुंधली तुंग भद्रा नदी के किनारे रहते थे,आत्मदेव पवित्र परंतु धुंधली क्रूर स्वभाव की झगड़ालू स्त्री थी। उनका पुत्र धुंधकारी चोरी करके राजा के महल से अलंकार चुरा लाया, और वेश्याओं को दे दिया। राजा के दण्ड से वेश्याओं ने धुंधकारी को रस्सी से बांधकर गले में फांसी का फंदा डाल दिया और जलते अंगारे धुंधकारी के मुख में भर दिए और उसे मार डाला। धुंधकारी भयंकर प्रेत बन गया।तो धुंधकारी के बड़े भाई गोकर्ण जी ने श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया तो 7 दिनों में ही कथा सुनने से धुंधकारी का उद्धार हो गया,धन्य है भागवत कथा। धुंधकारी को लेने के लिए पार्षद विमान लेकर आए।

श्री भागवत ऐसा ग्रंथ नहीं है जो मृत्यु के पश्चात ही मुक्ति दिलाए, यह तो मृत्यु के पहले ही मुक्ति दिलाता है। आज कथा के प्रथम दिवस में काली माता मंदिर से शोभा यात्रा शुरू करके सत्संग भवन तक की गई, और प्रथम दिवस में प्रोफेसर ललित मोहन गोयल और अशोक मित्तल ने पूजा करवाई। इस अवसर पर डॉक्टर मोहन लाल गुप्ता, अरुण अग्रवाल, पंडित अमन शर्मा, पंडित प्रदीप शुक्ला आदि उपस्थित थे।

उन्होंने कहा की शास्त्रों में परमात्मा के तीन स्वरूप सत,चित और आनंद हैं। सत प्रकट रूप से सर्वत्र है। चित-
मौन है, और आनंद आप्रकट रहता है, वैसे आनंद जीव के अंदर ही होता है, परंतु मनुष्य उस आनंद को अपने बाहर ही खोजता है। आनंद तो तुम्हारा अपना ही स्वरूप है। इस आनंद को जीवन में किस प्रकार प्रकट करें, यही भागवत शास्त्र सिखाता है। जैसे दूध में मक्खन रहता है फिर भी दिखता नहीं है परंतु दूध से दही बनकर, दही मंथन करने पर मक्खन दिख जाता है ठीक इसी प्रकार से मानव को मनोमंथन करके आनंद को प्रकट करना है।जीव है तो ईश्वर का ही स्वरूप है, तो भी उस ईश्वर को पहचानने का यत्न करता नहीं है। इसी कारण से इस जीव को आनंद नहीं मिलता है। नास्तिक भी हार थक कर अंत में शांति ही खोजता है।

व्यास जी के आश्रम में गणपति महाराज आते हैं। आनंद के धाम श्री शंकर जी का श्री शुकदेव जी महाराज के रूप में अवतार होता है,और शुकदेव जी महाराज अपनी माता अरनी देवी धर्मपत्नी श्री व्यास जी के पेट में 16 वर्ष तक रहते हैं, और ठाकुर जी शुकदेवजी को आश्वासन देते हैं कि मेरी माया का तुम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा तो फिर शुकदेव जी का जन्म होता है।
देव ऋषि नारद जी की वृंदावन में भक्ति से भेंट हुई। भागवत शास्त्र में 12 स्कन्धऔर18000 श्लोकों की व्यास जी ने रचना की है।

आत्मदेव ब्राह्मण और धुंधली तुंग भद्रा नदी के किनारे रहते थे,आत्मदेव पवित्र परंतु धुंधली क्रूर स्वभाव की झगड़ालू स्त्री थी। उनका पुत्र धुंधकारी चोरी करके राजा के महल से अलंकार चुरा लाया, और वेश्याओं को दे दिया। राजा के दण्ड से वेश्याओं ने धुंधकारी को रस्सी से बांधकर गले में फांसी का फंदा डाल दिया और जलते अंगारे धुंधकारी के मुख में भर दिए और उसे मार डाला। धुंधकारी भयंकर प्रेत बन गया।तो धुंधकारी के बड़े भाई गोकर्ण जी ने श्रीमद्भागवत कथा से दूर होते है। श्री भागवत ऐसा ग्रंथ नहीं है जो मृत्यु के पश्चात ही मुक्ति दिलाए, यह तो मृत्यु के पहले ही मुक्ति दिलाता है।

आज कथा के प्रथम दिवस में काली माता मंदिर से शोभा यात्रा शुरू करके सत्संग भवन तक की गई, और प्रथम दिवस में प्रोफेसर ललित मोहन गोयल और अशोक मित्तल ने पूजा करवाई। इस अवसर पर डॉक्टर मोहन लाल गुप्ता, अरुण अग्रवाल, पंडित अमन शर्मा, पंडित प्रदीप शुक्ला आदि उपस्थित थे।

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